हमारे बाहर का जीवन कैसा हो और हमारे भीतर का जीवन कैसा हो, मन इन दोनों स्थितियों में कार्य करता है और मन को स्वयं के अनुशासन में रखना ही एक गृहस्थ के लिए महत्वपूर्ण है और यही आध्यात्म भी है।यह विचार पूज्य गुरूजी सूर्यभान महाराज ने नई दिल्ली में आयोजित एक विचारगोष्ठी में व्यक्त किये। उन्होंने जीवन का रहस्य बताते हुए कहा दैवीय शक्तियां हमारे जीवन को उन्नत बनाने में मददगार है लेकिन सदाचरण जरूरी है । सदाचरण जिससे भावी जीवन उन्नत व समृद्ध बन सके ।
‘सर्वं सत्ये प्रतिष्ठतम्’ इसीलिए सत्य को परमधर्म भी कहा गया है। आपने अपने संबोधन में कहा कि संसार छोडे बिना आत्मा में प्रवेश नहीं हो सकता लेकिन संसार में रहते हुए भी हम आत्म प्रवृत्तियों में रत रह सकते है। जिसे संसार में जीना आ जाता है वही व्यक्ति अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचान सकता है। सूर्यभान महाराज ने कहा कि गृहस्थ जीवन में आध्यात्म की आवश्यकता व्यक्ति के वास्तविक स्वरूप में जीने के लिए है। आपक कोई भी कार्य दूसरों के लिए परेशानी का सबब न बने और आप कोई भी कार्य वह न करें जो अपने लिए पसंद नहीं।
भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि संपूर्ण वेदों को धारण करने और समस्त तीर्थों में स्नान करने के सत्कर्म का पुण्य सदा सत्य बोलने वाले पुरुष के पुण्य के बराबर हो सकता है या नहीं, इसमें तो संदेह है लेकिन इनसे सत्य श्रेष्ठ है, इसमें नहीं है। हजार अश्वमेध यज्ञों का पुण्य और दूसरे पलड़े पर केवल सत्य रखा जाए तो सत्य भारी पड़ेगा।
हमारे बाहर का जीवन कैसा हो और हमारे भीतर का जीवन कैसा हो, मन इन दोनों स्थितियों में कार्य करता है और मन को स्वयं के अनुशासन में रखना ही एक गृहस्थ के लिए महत्वपूर्ण है और यही आध्यात्म भी है।यह विचार पूज्य गुरूजी सूर्यभान महाराज ने नई दिल्ली में आयोजित एक विचारगोष्ठी में व्यक्त किये। उन्होंने जीवन का रहस्य बताते हुए कहा दैवीय शक्तियां हमारे जीवन को उन्नत बनाने में मददगार है लेकिन सदाचरण जरूरी है । सदाचरण जिससे भावी जीवन उन्नत व समृद्ध बन सके ।
‘सर्वं सत्ये प्रतिष्ठतम्’ इसीलिए सत्य को परमधर्म भी कहा गया है। आपने अपने संबोधन में कहा कि संसार छोडे बिना आत्मा में प्रवेश नहीं हो सकता लेकिन संसार में रहते हुए भी हम आत्म प्रवृत्तियों में रत रह सकते है। जिसे संसार में जीना आ जाता है वही व्यक्ति अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचान सकता है। सूर्यभान महाराज ने कहा कि गृहस्थ जीवन में आध्यात्म की आवश्यकता व्यक्ति के वास्तविक स्वरूप में जीने के लिए है। आपक कोई भी कार्य दूसरों के लिए परेशानी का सबब न बने और आप कोई भी कार्य वह न करें जो अपने लिए पसंद नहीं।
भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि संपूर्ण वेदों को धारण करने और समस्त तीर्थों में स्नान करने के सत्कर्म का पुण्य सदा सत्य बोलने वाले पुरुष के पुण्य के बराबर हो सकता है या नहीं, इसमें तो संदेह है लेकिन इनसे सत्य श्रेष्ठ है, इसमें नहीं है। हजार अश्वमेध यज्ञों का पुण्य और दूसरे पलड़े पर केवल सत्य रखा जाए तो सत्य भारी पड़ेगा।
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments